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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
पुष्प- स्तंभन कर्म में पीले, आकर्षण कर्म व वशीकरण कर्म में लाल, मारण, उच्चाटन, विद्वेषण कर्म में काले, शान्तिकर्म व पौष्टिक कर्म में सफेद पुष्प प्रयोजनीय हैं।
हस्त- आकर्षण, स्तंभन, शान्ति कर्म, पौष्टिक कर्म, मारण, विद्वेषण व उच्चाटन में दक्षिण (दाहिना हाथ) तथा वशीकरण में वामहस्त का प्रयोग निहित है।
अंगुलि- आकर्षण कर्म में कनिष्ठा, शान्ति कर्म में व पौष्टिक कर्म में मध्यमा, वशीकरण में अनामिका, स्तंभन, मारण, विद्वेषण व उच्चाटन कर्म में तर्जनी का प्रयोग किया जाता है।
पल्लव- आकर्षण में वौषट्, वशीकरण में वषट्, स्तंभन व मारण कर्म में घे घे, शान्ति कर्म व पौष्टिक कर्म में स्वाहा, विद्वेषण कर्म में हूं, उच्चाटन कर्म में फट् आदि इस तरह पल्लव समझना चाहिए।
मंडल- वशीकरण कर्म में अग्नि मंडल के बीच, शान्ति कर्म में व पौष्टिक कर्म में वरुण मंडल के बीच, स्तंभन मोहन आदि में महेन्द्र मंडल के बीच, चक्र व साध्य का नाम रखना चाहिए।
हाथों की मुद्राएं- आह्वानन आदि पंचोपचार पूजा में मुद्राओं का भी विधान है। कुछ मुद्राओं का विवरण निम्न प्रकार है
आह्वानन मुद्रा- दोनों हाथ बराबर कर अंजलि की तरह अंगूठों को अनामिका के मूल पर्व के पास लगायें, इसे आह्वाननी मुद्रा कहते हैं।
स्थापना मुद्रा- आह्वानन मुद्रा को उल्टा करें तो वह स्थापना मुद्रा हो जाती है।
सन्निधान मुद्रा- दोनों हाथों की मुट्ठियां बन्द कर अंगूठों को ऊपर सीधा करके रखें, इसे सन्निधान मुद्रा कहते हैं।
सन्निरोध मुद्रा- दोनों हाथों की मुट्ठियां बन्द कर अंगूठों को भी भीतर दबा लें, इसे सन्निरोध मुद्रा कहते हैं।
अवगुण्ठन मुद्रा- दोनों हाथों की मुट्ठियां बन्द कर दोनों तर्जनी अंगुलियों को लम्बा करें व अंगूठों को मध्यमा अंगुलियों पर रखें, इसे अवगुण्ठन मुद्रा कहते हैं।
अस्त्र मुद्रा- दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा अंगुली लम्बी करें, इसे अस्त्र मुद्रा कहते हैं।
जाप की परिभाषा मकारं च मनः प्रोक्तंत्रकारं त्राणमुच्यते, मनस्त्राणत्व योगेन इति प्रोक्तः जनम् पाप विनाशकम् ।।प्र.र. ॥
जप के प्रकार
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