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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
आग्नेय- धनहानि,
वायव्य- सन्तान अभाव, नैऋत्य- कुल का क्षय,
ईशान- सौभाग्य नाशक। (प्र. र. पे. ५४०)
मंत्र जाप विधि क्रम दिशा चार्ट -
दिशा- वशीकरण कर्म को उत्तराभिमुख उत्तर
होकर, आकर्षण कर्म को दक्षिणाभिमुख होकर, वायव्य /ईशान । स्तंभन कर्म को पूर्वाभिमुख होकर, शान्तिकर्म पश्चिम - पूर्व को पश्चिम की ओर मुख कर, पौष्टिक कर्म को
नैऋत्य की ओर मुखकर, मारण कर्म को नैऋत्य / | \ आग्नेय
ईशानाभिमुख होकर, विद्वेषण कर्म को आग्नेय दक्षिण
की ओर व उच्चाटन कर्म को वायव्य की ओर
मुंह कर साधना करना चाहिए। काल- शान्ति कर्म को अर्धरात्रि में, पौष्टिक कर्म को प्रभात में, वशीकरण, आकर्षण व स्तंभन कर्म को दिन के बारह बजे से पहले पूर्वाह्नकाल में, विद्वेषण कर्म को मध्याह्नकाल में, उच्चाटन कर्म को दोपहर बाद अपराह्न काल में व मारण कर्म की संध्या समय में साधना करना चाहिए।
मुद्रा- वशीकरण में सरोज मुद्रा, आकर्षण कर्म में अंकुश मुद्रा, स्तंभन कर्म में शंख मुद्रा, शान्ति कर्म व पौष्टिक कर्म में ज्ञान मुद्रा, मारण कर्म में वज्रासन मुद्रा, विद्वेषण व उच्चाटन कर्म में पल्लव मुद्रा का उपयोग करना चाहिए।
आसन- आकर्षण कर्म में दण्डासन, वशीकरण में स्वस्तिकासन, शान्ति कर्म व पौष्टिक कर्म में पद्मासन, स्तंभन कर्म में वज्रासन, मारण कर्म में भ्रदासन, विद्वेषण व उच्चाटन कर्म में कुक्कुटासन का प्रयोग करना चाहिए।
वर्ण- आकर्षण कर्म में उदय होते हुए सूर्य जैसे वर्ण का, वशीकरण कर्म में रक्त वर्ण, स्तंभन कर्म में पीतवर्ण, शान्ति कर्म व पौष्टिक कर्म में चन्द्रमा के समान सफेद वर्ण, विद्वेषण व उच्चाटन कर्म में धूम्रवर्ण तथा मारण कर्म में कृष्ण वर्ण ध्यातव्य है।
तत्त्व ध्यान- आकर्षण कर्म में अग्नि, वशीकरण कर्म व शान्ति कर्म में जल, स्तंभन व पौष्टिक कर्म में पृथ्वी, विद्वेषण व उच्चाटन कर्म में वायु व मारण कर्म में व्योम ध्यातव्य है।
माला-आकर्षण कर्म व वशीकरण में मूंगे की माला, स्तंभन कर्म में सुवर्ण की माला, शान्ति कर्म में स्फटिक की माला, पौष्टिक कर्म में मोती की माला, मारण, विद्वेषण व उच्चाटन कर्म में पुत्रजीवक की माला व्यवहार्य है।
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