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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर * यह मेरा अनुभव है कि किसी भी प्रकार का सिरदर्द हो, तो इक्कीस लौंग णमोकार मंत्र द्वारा मन्त्रित कर रोगी को खिला देने से सिरदर्द तत्काल बन्द हो जाता है। एक दिन के अन्तर से आने वाले बुखार में पीपल के पत्ते पर केसर से णमोकार लिखकर रोगी के हाथ में बाँध देने से बखार नहीं आता है। पेट दर्द में कपूर को णमोकार मन्त्र द्वारा मन्त्रित कर खिला देने से पेटदर्द तत्काल रुक जाता है। लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए प्रतिदिन प्रात:काल स्नानादि क्रियाओं से पवित्र होकर- “ॐ श्रीं क्लीं णमो अरिहंताणं ॐ श्रीं क्लीं णमो सिद्धाणं ॐ श्रीं क्लीं णमो आइरियाणं, ॐ श्रीं क्लीं णमो उवज्झायाणं ॐ श्रीं क्लीं णमो लोए सव्वसाहूणं" इस मन्त्र का १०८ बार पवित्र शुद्ध धूप देते हुए जाप करने से निश्चय ही लक्ष्मी प्राप्ति होती है। लेकिन इन सब साधनाओं के लिए मन्त्र के ऊपर अटूट श्रद्धा होना चाहिए, क्योंकि श्रद्धा के अभाव में मंत्र फलदायक नहीं होता। और यदि श्रद्धा होने के बाद भी पूर्व कर्मोदय से मंत्र सिद्ध न हो या कार्य में सफलता न मिले, तो भी मंत्र की या मंत्र को देने वाले गुरु की निन्दा आलोचना नहीं करना क्योंकि की गई साधना कभी निष्फल नहीं होती। यदि आपकी साधना का, मंत्र जाप का फल अभी न मिले तो बाद में अवश्य मिलता है। कारण किसी भी कार्य का फल दो प्रकार से प्राप्त होता है- तात्कालिक और कालान्तर भावी। जैसे तत्वानुशासन में लिखा है कि णमोकार मंत्र के एक अक्षर का भाव सहित स्मरण करने से सात सागर के और पाँच अक्षरों का भक्ति पूर्वक उच्चारण करने से पचास सागर तक भोगे जाने वाले पाप नष्ट हो जाते हैं और सम्पूर्ण मंत्र का भक्तिभाव सहित विधिपूर्वक स्मरण करने से पाँच सौ सागर तक भोगे जाने वाले पाप नष्ट हो जाते हैं। अभव्य प्राणी भी इस मंत्र के स्मरण से स्वर्गादि के सुखों को प्राप्त करता है। भाव सहित स्मरण किया गया मंत्र असंख्यात दुःखों का क्षय करने वाला तथा इह लौकिक और पारलौकिक समस्त सुखों को देने वाला है। इस मन्त्र के चिन्तन, स्मरण और मनन करने से भूत, प्रेत, ग्रहबाधा, राजभय, चोर भय, दुष्टभय, रोगभय आदि सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। राग-द्वेष-जन्य अशान्ति भी इस मन्त्र के जाप से दूर होती है। श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी आदि की प्राप्ति इसी मन्त्र के जाप से होती है। कर्मों की ग्रन्थी को खोलने वाला यही मन्त्र है तथा भावपूर्वक नित्य जप करने से निर्वाण पद की प्राप्ति होती है। * आचार्य वादीभसिंह ने क्षत्रचूड़ामणि ग्रन्थ में लिखा है कि करुणावश जीवन्धर स्वामी ने मरणोन्मुख कुत्ते को णमोकार मन्त्र सुनाया था, तो इस मन्त्र के प्रभाव से वह पापाचारी श्वान भी स्वर्ग में सुदर्शन नामक यक्षेन्द्र देव के रूप में उत्पन्न हुआ था। राजकुमार पार्श्वनाथ ने जलते हुए नाग-नागिन को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वे मरने के बाद धरणेन्द्रपद्मावती हुए। राजकुमार राम ने मरते हुए बैल को सुनाया तो वह बैल मरकर सुग्रीव हुआ। उसी महामंत्र के प्रभाव से अंजन चोर का भी उद्धार हुआ। अधिक क्या कहें पापी से पापी 32
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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