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________________ मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर विधि- इस मन्त्र द्वारा एक ही हाथ द्वारा खींचे गये जल को, (मन्त्र सिद्ध होने पर ९ बार और सिद्ध न होने पर १०८ बार) मन्त्रित करके, पश्चात् णमोकार महामंत्र पढ़ते हुए यह जल व्यन्तराक्रान्त व्यक्ति के ऊपर छिड़क देने से व्यन्तर, भूत, प्रेत, और पिशाच की बाधा दूर हो जाती है। ___ मंत्र जाप में अंगुलियों का महत्व :- इस मन्त्र को धर्मकार्य और मोक्ष प्राप्ति के लिए अंगुष्ठ और तर्जनी अंगुली से, शान्ति के लिए अंगुष्ठ और मध्यमा अँगुली से, सिद्धि के लिए अंगुष्ठ और अनामिका से एवं सर्वकार्य सिद्धि के लिए अंगुष्ठ और कनिष्ठा से जाप करना चाहिए। __ मंत्र जाप में माला का महत्व :- सभी कार्यों की सिद्धि के लिए पंचवर्ण पुष्पों की माला से, दुष्ट और व्यन्तरों के स्तम्भन के लिए मणियों की माला से, रोग शान्ति और पुत्रप्राप्ति के लिए मोतियों की माला या कमलगट्टों की माला से एवं शत्रुच्चाटन के लिए रुद्राक्ष की माला से मंत्र का जाप करना चाहिए। वैसे यह मन्त्र तो सभी का हित साधक हैं, परन्तु साधना करने वाला अपने भावों के अनुसार मारण, मोहनादि कार्यों को सिद्ध कर लेता है। मन्त्र साधना में मन्त्र की शक्ति के साथ-साथ साधक की शक्ति भी कार्य करती है। एक ही मन्त्र का फल विभिन्न साधकों को उनकी योग्यता, परिणाम, स्थिरता आदि के अनुसार भिन्न-भिन्न मिलता है। अतः मन्त्र के साथ साधक का भी महत्वपूर्ण सम्बन्ध हैं। * वास्तविक बात यह है कि यह मंत्र ध्वनिरूप है और भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ अ से लेकर ज्ञ तक भिन्न शक्ति स्वरूप हैं। प्रत्येक अक्षर में स्वतन्त्र शक्ति निहित है, भिन्न-भिन्न अक्षरों के संयोग से भिन्न-भिन्न प्रकार की शक्तियाँ उत्पन्न की जाती हैं। जो व्यक्ति इन ध्वनियों का मिश्रण करना जानता है, वह उन मिश्रित ध्वनियों के प्रयोग से उसी प्रकार के शक्तिशाली कार्यों को सिद्ध कर लेता है। णमोकार मन्त्र ध्वनि-समूह इस प्रकार का है कि इसके प्रयोग से भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं। ध्वनियों के घर्षण से दो प्रकार की विद्युत उत्पन्न होती है- एक धन विद्युत् और दूसरी ऋण विद्युत् । धन विद्युत् शक्ति द्वारा बाह्य पदार्थों पर प्रभाव पड़ता है और ऋणविद्युत् शक्ति अन्तरंग की रक्षा करती है। आज का विज्ञान भी मानता है कि प्रत्येक पदार्थ में दोनों प्रकार की शक्तियों निवास करती है और मंत्र का उच्चारण एवं मनन इन शक्तियों का विकास करता है। जिस प्रकार जल में छिपी हुई विद्युत-शक्ति जल के मन्थन से उत्पन्न होती है, उसी प्रकार मन्त्र के बार-बार उच्चारण करने से मन्त्र के ध्वनि-समूह में छिपी शक्तियाँ विकसित हो जाती हैं। भिन्न-भिन्न मन्त्रों में यह शक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है तथा शक्ति का विकास भी साधक की क्रिया और उसकी शक्ति पर निर्भर करता है। अतः सब मन्त्र की साधना सभी प्रकार के अभीष्टों को सिद्ध करने वाली और अनिष्टों को दूर करने वाली है।
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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