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________________ के प्रारम्भ की सूचक है। सातवें गुणस्थान के पश्चात् जब आत्मा उपशम या क्षय विधि को अपनाकर आध्यात्मिक विकास करता है तब भी गुणस्थान की श्रेणी विशेष सत्ता आदि के अनुसार कर्म प्रकृतियों की संख्या में अंतर आ जाता है। गुणस्थानों के क्रम में कर्म प्रकृतियों की स्थिति मिथ्यात्व गुणस्थान एवं कर्म प्रकृतियां - 1 इस गुणस्थान की कुल बंध योग- कर्म प्रकृतियां 120 हैं। फिर भी इसमें तीर्थंकर नामकर्म और आहारकविक इन तीन को छोड़कर 117 कर्म प्रकृतियों का बंध सम्भव है। उदय एवं उदीरणा की अपेक्षा से इनकी संख्या 122 ( 120 + मिश्र मोह और सम्यक्त्व मोह) है। इस गुणस्थान में मिश्र मोह, सम्यक्त्व मोह, आहारकद्विक और तीर्थंकर नामकर्म ( 5 ) का उदय एवं उदीरणा संम्भव नहीं है। इसलिए 117 कर्म प्रकृतियों की ही उदय एवं उदीरणा संभव है। इस गुणस्थान में 48 कर्मों की सत्ता मानी गई है। उस वृद्धि का कारण है- बंध की अपेक्षा से नामकर्म की 67 कर्म प्रकृतियां हैं किन्तु सत्ता की अपेक्षा से वे 93 हैं (26 अधिक) इसी प्रकार मोहनीय कर्म की दो कर्म प्रकृतियां - मिश्र मोह और मिथ्यात्वमोह बढ़ जाती हैं (120+ 28= 148) सामान्यतः इस गुणस्थान में किसी कर्म प्रकृति का पूर्ण क्षय या उपशम नहीं होता फिर भी जो जीव सम्यक्त्व गुणस्थान में आरोहण करते हैं वे इस गुणस्थान के उत्तरार्द्ध चरण में सात कर्म प्रकृतियों( अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क, मिथ्यात्व मोह, मिश्र मोह और सम्यक्त्व मोह) का क्षय या उपशम करते हैं। संशयित, अभिग्रहीत और अनभिग्रहीत इस प्रकार तीन भेद हैं। (गो.जी.गा. 17 के अनुसार) मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से होने वाले मिथ्या परिणामों का अनुभव करने वाला जीव विपरीत श्रद्धान वाला कहलाता है जिस प्रकार पित्त ज्वर से पीड़ित जीव को मीठा रस अच्छा मालूम नहीं होता उसी प्रकार ऐसे जीव को यथार्थ धर्म अच्छा मालूम नहीं होता। मिथ्यात्व के पाँच भेद हैंएकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान । (गो.जी.गा.ध. 1 / 1 /9/ पृ. 162गा. 106)। जितने वचन मार्ग होते हैं उतने ही नय के भेद होते हैं जितने नयवाद हैं उतने पर समय (अनेकान्तबाह्यमत) होते हैं। जावदिया वयणवहा तावदिया चेव होंति णयवादा। जावदिया णयवादा तावदिया चेव पर समय ।। (ध. 1 / 1 /9/ गा. 105 ) इसलिए मिथ्यात्व के पाँच ही भेद हैं ऐसा कोई नियम नहीं है। मिथ्यात्व के पाँच प्रकार का उपलक्षण मात्र है। मिथ्यात्व के दो अन्य प्रकार भी कहे जाते हैं- व्यक्त एवं अव्यक्त मिथ्यात्व । व्यक्त मिथ्यात्व- व्यक्त मिथ्यात्व दस प्रकार के होते हैं "दसविहे मिच्छत्ते पन्नते, तम जहा अधम्मे धम्म सव्वा, धम्मे अधम्म सव्वा, उम्मग्गे मग्ग सव्वा, मग्गेउम्मशसव्वा, अजीवेसु जीव सव्वा, जीवेसु अजीव सव्वा, आसाहुसु साहुसव्वा, साहुसु असाहु सव्वा, अमुत्तेसु मुत्तसव्वा, मुत्तेसु अमुत्तसव्वा” - ठाणागंसूत्र 87
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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