SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिच्छादिही सासायणे य तह सम्ममिच्छादिट्ठीय। अविरसंसम्मदिट्ठी विरयाविरए मत्ते य।। तत्ते य अप्पमत्तो नियट्टिअनियट्टिबायरे सुहुमे। उवसंत खीण मोहे होड़ सजोगी अजोगी य।। नियुक्तिसंग्रह (आवश्यकनियुक्ति) पृ. 149 तत्थ इमातिं चोद्दस गुणहाणाणि... अजोगिकेवली नाम सलेसीपाडिवन्नओ, सो य तीहिं जोगेहिं विरहितो जाव कखगघङ इच्चेताइं पंचहस्सक्खराइं उच्चरिज्जंति एवतियं कालमजोगिकेवली भावितूण तोहे सव्वकम्मविणिमुक्को सिद्ध भवति।। आवश्यकचूर्णि (जिनदासगणि ) उत्तर भाग, पृ. 133-136 एदेसि चेव चोद्दसण्हं जीवसमासाण परुवणहदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगद्वाराणि यव्वाणि, भवंति मिच्छदिहि....सजोगकेवली अजोगकेवली सिद्धआ चेदि।। -षट्खण्डागम (सत्प्ररुपणा) 4,154-201 मिच्छादिही सासादणो य मिस्सा असंजदो चेव। देसविरदो पमत्तो अपमत्तो तह य णायव्वो।। एत्तो अपुव्वकरणो अणियही सुहुमसंपराओ य। उवसंतखीणमोहो सजोगिकेवलिजिणे अजोगी य ।। सुरणारयेसु चत्तारि होति तिरियेसु झाण पंचेव। मंणुदीएवि तहा चोद्दसगुणणामघेयाणि।। -मूलाचार (पर्याप्त्याधिकार) पृ. 273-279 अध खवयसेढिमधिगम्म कुणइ साधु अपुव्वकरणं सो। होइ तमपुव्वकरणं कयाइ अप्पत्तपुव्वंति। अणिवित्तिकरणणाणं णवमं गुणठाणयं च अधइगम्म। णिद्दाणिद्दा पयला पयला तध थीणगिद्धि च ।। -भगवती आराधना, भाग-2 पृ. 890 समयावांग के पश्चात श्वेताम्बर सम्प्रदाय में आवश्यकनियुक्तियों में इनका उल्लेख मिलता है किन्तु इनमें भी इसे गुणस्थान न कहकर जीवस्थान कहा गया है।
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy