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भीदशवकालिको पेक्ष्य-सम्पद निरीक्ष्य गुरोरत्नाधिकस्य सफाशे आगतन मुनिः ऐयापयिकी: "इच्छामि पडियामि" इत्यादिलक्षणाम् आदाय-पटिस्या पविक्रामेत्-कायोत्सो कुर्यात् ॥८॥८॥
तंत्र (कायोत्सर्गे) किंपुर्यात् इत्याह-'आमोहताण' इत्यादि, 'उज्जुप्पन्नों इत्यादि च। मूलम्-आभोइत्ताण नीसेसं, अइयारं जहक्कम ।
गमणागमणे चैव, भत्ते पाणे य संजए ॥८९॥ उज्जुप्पन्नो अणुविग्गो, अवक्खित्तेण चेयसा। आलोए गुरुसगासे, जं जहा-गहियं भवे ॥९० ॥ छाया-आभोग्य निश्शेषम् , अविवार ययाक्रमम् ।
गमनागमने चैव, भक्त पाने च संयतः १८९॥ ऋजुप्रज्ञः अनुद्विग्नः, अन्याक्षिप्लेन चेतसा।
आलोचयेद् गुरुसकाशे, यद् यथा गृहीतं भवेत् ।।९०॥ सान्वयार्थ:-संजए-कायोत्सर्गमें रहा हआ मुनि गमणागमणे-जानेआनेभ वेव और भत्ते-आहार य-तथा पाणे-पानीके ग्रहण करनेमें (लगे हुए। नीसेसं-सब प्रकारके अइयारं अतिचारोंको, तथा जंजो अशनादि जहार जिस प्रकार गहियं भवे ग्रहण किया हुआ हो उसे भी, जहक्कम यथाक्रमअनुक्रमसे आभोइत्ताण-उपयोगसहित चिन्तन करके, उज्जुप्पन्नी-सरल बुद्धि वाला अणुश्विग्गो-उद्वेगरहित वह मुनि अव्वक्खित्तण-विक्षेपरहित-एकान चेयसा-चित्तसे गुरुसगासे-गुरुके समीप आलोए-आलोवे ।।८९॥९०। सम्यक् प्रकार प्रतिलेखना करके दीक्षामें बड़े मुनिके समीप आकर "इच्छामि पडिकमि” इत्यादि ईरियावहियाका पाठ बोल करक कायोत्सर्ग करे ॥ ८७॥ ८८ ॥
कायोत्सर्गमें क्या करना चाहिए सो कहते हैं-'आभोइत्ताण' इत्यादि, 'उज्जुप्पन्नो' इत्यादि।
१३ प्रतिमना शर ीक्षामा माटो मुनिनी सभी२ मावीर इच्छामि पडिकमिउँ ઈત્યાદિ ઈરિયાવહિયાને પાઠ બેલીને કાર્યોત્સર્ગ કરે. (૮૭-૮૮).
अयोसभा शु ४२वु नये ते ४ छ-आभोइत्ताणत्या . तथा उज्जुप्पन्नो० ७त्यादि.