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________________ - - - - ૩૮૨ भीमकालिको मार्गको परिवज्जए-जोदे, तया संकमेणगीनट आदिके कारण जिस मार्गम इंट फाठ आदि लांघने के लिए रखे हों उससे भी न गोम्जा नहीं जाये ||४|| टीका-'ओयाय' इत्यादि । 'परगम' इति आक्रमणमाक्रमाअालम्बन परथासायाममश पराक्रमः परस्याऽऽक्रमो या पराक्रमस्तस्मिन् , यहा परक्रम' इविच्छाया, ततथ परभासी प्रमय परक्रमस्तस्मिन् 'सर्वया गस्त्यन्तरे' इत्ययस्तथा च-पराक्रमे अश्या परक्रमे उपाये विद्यमाने वर्तमाने सति अवपातः स्खलनस्थानं सत्यप्यालोके येन सभरणे स्खलनमवश्यसम्भाव्यं तम् , विषम-दुगमता द्विकटं मार्ग स्थाणु-लूनसस्यादिस्टं तदहलं क्षेत्रादिमार्गमित्यर्थः, विजलविगत जलं यस्मात् तथोक्तं पशिलस्थलं परिवर्जयेद-परित्यजेत, संक्रमेण संक्रम्यतन समलध्यते जलकर्दमादिबहुल विपमस्थानं येन स संक्रमा इटका-काष्ठ-पापाणाद निर्मितमार्गविशेपस्तेन न गच्छेत् न समरेत् । 'विजमाणे परकमें' इत्यनेनोपा: यान्तराभावे नायं प्रतिषेध इत्यपवादः सचितः ॥४॥ १ गतमयतया संभावितस्खलनकम् । २ उन्नताऽचनतत्वादुर्गमम् । 'ओचायं०' इत्यादि । पर अवलम्बको यहाँ पर परक्रम अथवा पराक्रमसे कहा गया है अत एव अर्थ यह है कि दसरे मार्गक रहत हुए, जिसमें चलनेसे गिर पड़नेकी संभावना हो, दुर्गम होने के कारण विकट हो, जिसमें काटे हुए ज्वार आदिके डंठल हों, और जो कीचड़ वाला हो, जल-कीचड आदिकी अधिकता होनेसे लांघनेके लिए इट, काष्ठ, पत्थर आदि रखे हुए हों, उस विपम मार्गसे गमन न करें। 'विजमाणे परकमे' इस पदसे यह सूचित किया है कि दूसरा __ ओवायं० छत्यादि. ५२ अपने सही ५२६ अथवा ५२मश्री वामा આવેલ છે, એથી એ અર્થ થાય છે કે બીજે માર્ગ હોવા છતાં, જેમાં ચાલ વાથી પડી જવાની સંભાવના હોય, દુર્ગમ હોવાને લીધે વિકટ હોય, જેમાં કાપલી જુવાર આદિનાં કૂંડાં હોય, અને જે કીચડવાળે હય, પાણી-કીચડ વગેરે વધુ હોવાના કારણે ઓળંગવા માટે ઈટ, લાકડું કે પત્થર આદિ રાખેલાં હેય, એવા વિષમ માર્ગથી ગમન ન કરે. विजमाणे परकमे मे शण्डया सेभ सूयव्यु भान्स न डाय
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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