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अध्ययन ५ उ. १ गा. ५-विपममार्गगमने विराधना तत्र गच्छतो हानिमाइ-'पवडते' इत्यादि । मूलम्-पवडते व से तत्थ, पक्खलते व संजए।
हिंसेज पाणभूयाई, तसे अदुव थावरे ॥५॥ । छाया-प्रपतंश्च स तत्र, प्रस्खलॅश संयतः ।
हिंस्यात्माणभूतानि, प्रसान् अथवा स्थावरान् ॥५॥ पूर्वोक्त मार्गसे जाने में दोप बताते हैं
सान्वयार्थः-से-उस मार्गसे जानेवाला वह संजए- साधु वयदि तत्यवहां पवडते-गिर जाय व अथवा पक्खलंतेरपट पड़े तो तसे-उस-द्वीन्द्रियादि अदुवः अथवा थावरे स्थावर-पृथिव्यादि पाणभ्याईन्भाणी भूतोंकी हिंसेजाहिंसा करे। अर्थात् ऐसे मार्गमें जानेसे साधुको आत्म और संयम दोनोंकी विराधनाका संभव है ।।५।। . टीकातत्र तस्मिन् अवपातादौ प्रपतन प्रस्खलब स संयतः साधुः सानद्वीन्द्रियादिलक्षणान, स्थावरान् पृथिव्यायेकेन्द्रियान, अथवा माणभूतानि सस्थावरोभयविधान प्राणिनो हिस्यात-मर्दयेत् पीडयेदिति यावत् । पतनादिना चाऽऽत्मविराधनाधपि नियनं भावीति भावः ॥५॥ मार्ग न हो तो यह निषेध नहीं है-अर्थात् अन्य मार्गके अभावमें ऐसे मार्गसे भी जा सकते हैं ॥४॥
ऐसे मार्गमें चलनेसे होनेवाली हानि बताते है-'पवडते.' इत्यादि।
यदि अवपात आदि पूर्वोक्त मागों में गमन करनेसे गिर पड़े या रपट जावे तो दीन्द्रिय आदि वस या पृथिवीकायिक आदि स्थावर जीवॉकी अथवा दोनों प्रकारके जीवोंकी हिंसा होती है तथा गिरने आदिसे आत्मविराधना भी अवश्य होती है ॥५॥ તે એને નિષેધ નથી--અથાંત અન્ય માર્ગને અભાવે એવા માર્ગથી પણ જઈ शाय छे. (४)
मे भाभा यापायी थनारी पनि तावे - पचडते. त्यादि.
જે અવપત આદિ પૂર્વોકત મોંમાં ગમન કરવાથી પડી જાય છે લપસી જાય તે હીન્દ્રિયાદિ ત્રસ યા પૃથ્વીકાયિક આદિ સ્થાવર જીવેની અથવા બેઉ પ્રકારના છની હિંસા થાય છે, તથા પડવાથી આત્મવિરાધના પણ અવશ્ય थाय छे. (५)