SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - निशोभनदापोपयोगवनयामानाना आवाशियाकर्मादिदोषरहित - - __ श्रीदशवकालिका ग्रामे या भयवा नगरे, द्वितीय-या शन्दा खेटकवटादी, गोवराप्रगता गोरिव चरण यथायोग्यं स्वल्पस्वस्पग्रहणं गोचरः, अप्राधाकर्मादिदोषरहित तया श्रेष्ठः, स पासी गोचरति गोचरामः, मार्पवाविशेषणपूर्वनिपातामावा, अग्रगोचर इत्यर्थः, तत्र गतापमानः गोचराप्रगतः अव्याशिन-स्थिरेम भिक्षागतसफलदोषोपयोगवतेत्यर्थः, चेवसा-चित्तेन अनुधिमा अगाभादिपरापहजनितक्षोभरहितः, मन्द-निर्यधास्याच्या ईर्यापथं शोधयमित्यर्थः, चरेत् गच्छन् । ___ 'गोयरग्गगओ' इत्यनेन नवकोटिविशुद्धादारी ग्रहीतन्य इति सूचितम् । 'अन्नक्खित्तेण चेयसा' इत्यनेन चिचस्थैर्येणेव मिक्षादिशुद्धिर्भवतीति ध्वनितम् । 'अणुविग्गो' इत्यतः परीपहसइनसामर्थ्य योधितम् ॥ २॥ गोचरीगमनप्रकारानाइ-'पुरओ' इत्यादि । वह भावमुनि पिण्ड-गवेपणाका समय होने पर ग्राम, नगर खेडा, कर्चट आदिमें यथायोग्य थोड़ा-थोडा निर्दोष आहार ग्रहण करता हुआ भिक्षाके समस्त दोपोंका उपयोग रखनेवाले अर्थात् अन्याक्षिप्त चित्तत अलाभ आदि परीपह जनित क्षोभसे रहित होकर ईर्यापथ शोधते हुए मन्दगतिसे चले। 'गोयरम्गगओ' पदसे यह सूचित हुआ है कि साधुको नवकोटिविशुद्ध आहार लेना चाहिए। 'अव्यक्खित्तेण चेयसा' इससे यह धोतित होता है कि चित्तकी स्थिरतासे ही भिक्षाकी शुद्धि निभ सकती है। 'अणुव्विग्गो पदसे परीपह संहनेका सामर्थ्य प्रगट किया है ॥२॥ __ गोचरीके लिए गमनविधि बताते है-'पुरओ' इत्यादि । એ ભાવ મુનિ પિંડોષણને સમય થતાં ગ્રામ, નગર, ગામડું, કે આદિમાં યથાયોગ્ય ડે શેડે નિર્દોષ આહાર ગ્રહણ કરતાં, ભિક્ષાના બધા દેને ઉપગ રાખવાવાળે અથાત અવ્યાક્ષિત-ચિત્તથી અલાભ આદિ પર પહથી ઉત્પન્ન થતા ભથી રહિત થઈને ઈર્યાપથ શોધતાં મંદ ગતિએ ચાલે. गोयरग्गगो शपथी मेम सूयित युछ साधुरी नवोटिम्मे विशुद्ध मालार . अन्धक्खित्तेण चेयसा मेथी मेम अट थाय छ, यितना स्तिथी २४ मिक्षानी शुद्धि नली श छ, अगुम्बिग्गो शाथी पशष सई. વાનું સામર્થ્ય પ્રકટ કર્યું છે. (૨) गायराने भारे गमनविधि यता -पुरओ त्याहि.
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy