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________________ २९५ mammaww w o mamananewsnAm asmeenasamavasaamaan अध्ययन ४ गा. ६ अयतनाया दुःखदफलम् कर्मको बंधई बांधता है, तं-उस कारण से उस पापकर्मका फलं-फल कडुयं-दुःखदायी होइ होता है ॥५॥ टीका-'अजयं भुंजमाणो' इत्यादि । अयतं भुञ्जाना यथाकल्पलब्धान्तमान्ताधाहारं संयोजनादिमण्डलदोपापरिहारेण चपड़-चपड़-शब्दपूर्वकमभ्यवहरन्। अन्यत् मुबोधम् ॥५॥ मूलम्-अजयं भासमाणो य, पाणभूयाई हिंसइ । बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं ॥६॥ छाया-अयतं भापमाणश्व, माणभूतानि हिनस्ति । बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम् ।।६।। . सान्चयार्थः-अजय-अयतना-पूर्वक भासमाणो बोलता हुआ साधु पाणभूयाइ-बस स्थावर जीवोंकी हिंसह हिंसा करता है, य और पावयं कम्म-पापकर्मको बंधई-बांधता है, त उस कारण से उस पापकर्म के फलं फल कड्डयंदुःखदायी होइ होता है ॥६॥ टीका-'अजयं भासमाणो' इत्यादि । अयतं भाषमाणा अयतनया ब्रुवन् । 'अजयं मुंजमाणो' इत्यादि । साधुके कल्पके अनुसार प्राप्त हुए आहारका संयोजना आदि मण्डल दोपोंका परित्याग न करके 'चपड़चपड़े आदि शब्द करते हुए भोजन करनेसे पापकर्म बंधता है और उसका फल कडुआ होता है ॥५॥ __'अजयं भासमाणो' इत्यादि । अयतनापूर्वक भापण करनेसे हिंसा • होती है और पापकर्मका बंध होता है। उस पापकर्मका फल कडुआ होता है । अजयं भुंजमाणो इत्यादि. साधुना ४८पने अनुसार पास था PATRA સંજના આદિ મંડલ દેને પરિત્યાગ કર્યા વિના “અપડ-ચપડ અવાજ કરતાં ભજન કરવાથી પાપકર્મ બંધાય છે. અને તેનાં કડવાં ફળ આવે છે. (૧) अजयं भासमाणो या. मयतनापू सापय ४२पाथी हिंसा थाय छे. અને પાપકર્મ બંધાય છે. એ પાપકર્મના ફળ કડવાં આવે છે.
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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