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________________ - १८२ श्रीदवकालिकसत्रे वस्तुस्मरणमिति फलितम्, यद्वा आतुरशन्दोऽत्र भावप्रधाननिर्देशस्तथाचाऽऽतुरस्खे स्मरणमिति समासः, रोगाघवस्थायां पूर्वाऽनुभूतवस्तुस्मरणमित्यर्थः (३१)। चकार इडापि समुच्चयार्थकः । अत्रासंयमादयो दोपा जायन्ते ॥६॥ मूलम्-मूलए सिंगवेरे य, उच्छृखंडे अनिव्वुडे । कंदै मूले य सञ्चित्ते, फले वीए य आमए ॥७॥ छायाः-मूलकं शृङ्गबेरं च, इक्षुखण्डमनिर्वृतम् । कन्दो मूलं च सचित्तं, फल वीजं चामकम् ॥७॥ सान्वयार्थः-य-और (३२) मृलए मृला (३३) सिंगवेरे-अदरख (३४) उच्छुखंडे गन्ना (सेलडी) अनिव्वुडे-शस्त्रसे अपरिणत (३५) कंदे-कन्द यऔर (३६) मूले-शिफा (तथा) सचित्ते सचित्त (३७) फले-फल य और आमए सचित्त (३८) बीए-बीज । भावार्थ-इनके सेवनसे अनन्तकाय आदि वनस्पतिकायकी विराधना होती है ॥७॥ टीका-मूलकं प्रसिद्धम् (३२), शृङ्गय शृङ्गवढेरं शरीरं यस्य तद् आद्रकमित्यर्थः (३३), च-तथा इक्षुखण्डम् इक्षुशकलम् , एतत्रयम् अनिवृतं--शस्त्रापरिणतम् (३४) कन्दा शूरणादिः (३५), मूलं शिफा (३६), च-पुनः, सचित्त-सजीवम् , स्मरण करना अर्थात् बीमारीमें हाय! हाय! करना ॥६॥ (३२) सचित्त मूलाका सेवन करना। (३३) सचित्त अदरख (आदा) का सेवन करना। (३४) सचित्त इक्षुखण्डका सेवन करना। (३५) सचित्त शरण आदि कन्दोंका सेवन करना। (३६) सचित्त मूलका सेवन करना। (भाशमा 'डाय! हाय!' ४२वी. (6) (३२) सथित भूभानु सेवन ४२. (33) सथित्त मानु सेवन २j. (३४) सथित 28 पतीi-४४i-तु सेवन ४२. (३५) सथित्त सू२३ माहिहार्नु सेवन ४२. (३६) सायत्त भूगर्नु सेवन ४२पुं.
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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