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अध्ययन ३ गा. ७-८ (६२) अनाचीर्णानि फलं-कर्कटी-त्रपुपादिकम्(३७),च-तथा बीजं-तिलादि, आमकम्-सचित्तम्(३८), अत्रानन्तकायादिविराधनादिदोपा जायन्ते ॥ ७॥ मूलम्-सोवच्चले सिंधवे लोणे, रुमालोणे य आमए ।
सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य आमए ॥८॥ छायाः-सौवर्चलं सैन्धवो लवणो, रुमालवणश्यामकः ।
सामुद्रः पांशुक्षारश्च, काललवणश्वामकः ॥ ८॥ सान्वयार्थः-आमए सचित (३९) सोवचले सौवर्चल-संचरनमक (४०) सिंधवे लोणे सैन्धव-सींधानमक (४१) रुमालोणे रुमानदीसे निकला हुआ नमक (४२) सामुद्दे समुद्री नमक य और (४३) पंसुखारे ऊपर नमक य% और आमए-सचित्त (४४) कालालोणे-काला नमक । भावार्थ-उल्लिखित नमकोंका सेवन करनेसे पृथ्वीकाय आदिकी विराधना होती है ॥ ८ ॥
टीका-सुवर्चले देशविशेपे भवः सौवर्चला रुचकलवणः (३९),
सिन्धुनापलक्षितदेशीयपर्वते भवः सैन्धवः, लघण: लुनाति-छिनत्ति दूरयति कफादिकमिति लवणः, इदं सौवर्चलादेविशेषणपदम् (४०),
च-तथा, रुमालवणः रुमा-विशिष्टलवणाकरभूता काचिन्नदी तस्या लवणः, आमका सचित्तः, अस्य पूर्वाः सर्वत्र सम्बन्धः (४१),
(३७) सचित्त ककड़ी खीरा आदि फलोंका सेवन करना। (३८) सचित्त बीजका-तिल आदिका सेवन करना ॥७॥ (३९) सचित्त रुचक (सौवर्चल सोंचर) नमकका सेवन करना । (४०) सचित्त सैन्धव (सेंधा) नमकका सेवन करना । (४१) सचित्त रुमा (नदीविशेपके) नमकका सेवन करना। (૩૭) સચિત્ત કાકડી ખીરા આદિ ફલેનું સેવન કરવું. (३८) सथित मी त माहितुं वन ४२. (७) (36) सथित्त ३५ सूर (सौवर्थ-संय)नु सेवन ४२j. (४०) सथित्त सिंघासून सेवन ४२पुं. (४१) सथित्त ३मा (नहीविशेषमाथी नाणेसा) भानु सेवन ४२.