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शकेन्द्रक्रत. तीर्थकरजन्म. महोत्सवः
कल्पसूत्रे । करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो तत्पश्चात् वे आभियोगिक देव उस आज्ञा को विनयनशब्दार्थे
पूर्वक श्रवण करते हैं और शक देवेन्द्र के पास से निकल कर भगवान् तीर्थंकर के जन्म ॥८४॥
| नगर में शृङ्गाटक यावत् महापथ में आकर ऐसा बोलते हैं कि अहो बहुत भवनपति यावत् ॥ !! वैमानिक देवों में जो कोई तीर्थंकर भगवान् का अथवा उनकी माता का बुरा चितवन करेगा
उसका मस्तक ताडवृक्ष की मंजरी जैसे तोड दिया जायगा इस प्रकार उसकी उद्घोषणा करके शकेन्द्र को उनकी आज्ञा पीछी देते हैं तत्पश्चात् वे बहुत भवनपति वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक देव भगवान् तीर्थंकर का जन्म महोत्सव करके जहां नंदीश्वर द्वीप है वहां आते है वहां अष्टान्हिक (अट्ठाइ) महोत्सव करते हैं फिर वे सब अपने २ स्थान जाते हैं इस प्रकार यह तीर्थंकर के जन्मोत्सव का पांचवा अधिकार संपूर्ण हुआ॥२८॥ . मूलभू-तएणं तिसलाए देवीए ताओ अंगपडियारियाओ तिसलं देविं नवण्हं मासाणं जाव दारगं पयायं पासइ, पासित्ता सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं
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