________________ गणधराणां नामादिकम् कल्पसूत्रे सशन्दार्थे // 896 // मूलभू-सुकुमाल कोमलतले, तेसिं पणमामि लक्खणं पसत्थे॥ पएपवाय णीणं, पाडित्थगसएहिं पणिवइएहिं, जे अन्ने भगवंते, कोलियसुय आणुओगिए धीरे, तं वंदिऊण सिरसा // 49 // .. भावार्थ-- अत्यंत, सुकुमार कोमल मनहर हस्त पांव के तलेवाले उत्तम वर्णन करने योग्य लक्षण के धारक उत्तम कीर्ति योग्य प्रवर्तन सिद्धान्त के जानकार स्वगच्छता करके सेकडों साधु के हृदक में रमण बहुत साधुओं के वन्दनीय, अन्य गच्छवाले भी बहुत सूत्रार्थ जिनके पास लेने आते ऐसे // 49 // और भी बहुत स्थविर भगवंत आचारांगादि कालिक सूत्र के अर्थ के पाठी अच्छी बुद्धिवाले धैर्यवंत जिनको सविनय मस्तक नमकर वंदना नमस्कार होवो.. // समाप्त // // 896 //