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________________ कल्पसूत्रे सशब्दाथें ॥७८॥ शकेन्द्रक्रततीर्थकरजन्ममहोत्सवः जाव णाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मण णयरे जेणेव जम्मण भवणं जेणेव तित्थयरमाया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता भयवं तित्थयरमाऊए पासे ठवेइ २ ता तित्थयरपडिरूवगं पडिसाहरइ २ ता ओसोवणिं पडिसाहरइ २ ता एगं महं खोमजुयलं कुंडलजुयलं च भगवओ तित्थयरस्स ओसीसगमूले ठवेइ २ त्ता एगं महं सिरिदामगडं तवणिज्जलंबूसगं सुवण्णपयरगमंडियं णाणा मणिरयणविविहहारद्धहारउवसोहियसमुदयं भगवओ तित्थयरस्स उल्लोअंसि निक्खिवइ तए णं भगवं तित्थयरे अणिमिसाए दिवीए देहमाणे २ सुहंसुहेणं अभिरममाणे चिइ ॥२६॥ .: भावार्थ-तत्पश्चात् वह शकेन्द्र ८४ हजार सामानीक यावत् अन्य भवनपति वाण- व्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक देवता और देवियों सहित सब ऋद्धि यावत् शब्द से ||७८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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