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शक्रेन्द्रत तीर्थकरजन्म.. महोत्सवः
कल्पसूत्रे कम्पित कर देने के कारण, तथा 'यह भगवान् भविष्यत् काल में घोर भय से भयानक सशब्दार्थे अचेलता आदि बडे-बडे परीषहों को सहन करेंगे' यह सोचकर, देवों के समूह के ॥७७||
सामने भगवान् का गुणनिष्पन्न 'श्री महावीर' ऐसा नाम रक्खा ॥२४॥
... मूलमंतए णं. सक्के देविंद देवराया पंचसक्के विडव्वइ २ त्ता एगे सक्के Mil भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ एगे सक्के पिट्ठओ य आयावत्तं धरेइ दुवे सक्का उभओ पासिं चामरूक्खेवं करोति एगे सक्के वज्ज़पाणि पुरओ पगढई ॥२५॥
भावार्थ-तत्पश्चात् शक्र देवेन्द्र पांच शक्र का रूप वैक्रिय करते हैं एक शकेन्द्र भगवान् तीर्थंकर को करतल से ग्रहण करते हैं एक शकेन्द्र पीछे रहकर छत्र धारण करते हैं दो शकेन्द्र दोनों बाजु चामर विंजते हैं और एक शकेन्द्र हाथ में वज्र धारण कर खड़े रहते हैं ॥२५॥
मूलम्-एएणं से सक्के चउरासीए सामाणियसाहस्सीहिं जावः अण्णेहिं य भवणवईवाणमंतरजोइसवेमाणिएहिं देवेहिं देविहि य सद्धिं संपरिखुडे सव्विड्ढीए
XI-SSPAIN
॥७७॥
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