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जन्म
कल्पसूत्रे उत्कृष्ट दिव्य देवगति से जहां भगवान् तीर्थंकर का जन्म नगर और जन्म भवन l शकेन्द्रक्रतसशब्दार्थे
तीर्थकरऔर जहां तीर्थंकर की माता है वहां आते हैं वहां भगवान् तीर्थंकर को उनकी ॥७९॥
माता के पास रखते हैं वहां से तीर्थंकर का जो रूप पहिले बनाकर रखते हैं उसका महोत्सवः साहरन करते हैं अवस्थापिनी निद्रा का भी साहरन करते हैं और एक बडा क्षोम युगल (अत्युत्तम कार्पास वस्त्र) और कुंडल का युगल ये दोनों तीर्थंकर के ओसीसा के नीचे रखते |
हैं फिर एक बड़ा सौभाग्यवंत विचित्र रत्नों की माला का हार सुवर्णमय उंचा लम्बा IH अनेक प्रकार के मणि रत्नमय विविध प्रकार के हार अर्धहार से सुशोभित श्रीदाम कांड
नामक दडा भगवंत को दिखने में आवे ऐसा रखते हैं तत्पश्चात् भगवान् तीर्थंकर को अनिमिष दृष्टि से देखते हुए आनंद करते हुए रहते हैं ॥२६॥
मूलम्-तए णं से सक्के देविंदे देवराया वेसमणं देवे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ बत्तीसं सुअण्ण
॥७९॥