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________________ कल्पसू सदा ॥ ८५४ ॥ संखा छसयोत्तर पंचसहस्सा, ओहिणाणीणं संखा, छसयोत्तर दो सहस्सा, मणपज्जवनाणीणं संखा, दोसहस्स पंचसया एक्कावन्नं, चउद्दसपुव्वीणं संखा दसोत्तर छसया, वेडव्विलद्धिधराणं संखा तओ सयोत्तर सत्तसहस्सा, वाईणं संखा सोलससया, सासणकालो एकसहस्स, कोडिवरिसं, तेबीससहस्स, सत्त सया पन्नासा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो जक्खिदो, सासणदेवी धारणी ॥ • १८ श्री अरहनाथप्रभु का चरित्र - भावार्थ - जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह में सुसीमा नाम की नगरी थी। वहां धनपति राजा रहते थे । वे राज्य का संचालन करते हुए भी जिनधर्म का हृदय से पालन करते थे। संवर नाम के आचार्य का उपदेश सुनकर उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया । उन्होंने अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर स्थापित कर संवराचार्य के समीप दीक्षा धारण कर ली । 300CCCCCC अरहनाथ प्रभोः चरित्रम् ॥ ८५४ ॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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