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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥८५५॥
अरहनाथ प्रभोः चरित्रम्
प्रवजित होकर कठोर तप करने लगे । बीस स्थान की शुद्ध भावना से आराधना करते हुए उन्होंते तीथकर नामकर्म का उपार्जन किया। संयम की आराधना कर अन्तिम समय में अनशन किया और समाधिपूर्वक कालधर्म पाकर सवार्थसिद्ध विमान में अहमिन्द्र पद प्राप्त किया। - वहां से च्यवकर सर्वार्थसिद्ध देवलोक की स्थिति ३३ सागरोपम, जन्म नगरी हस्तिनापुर, पिता का नाम सुदर्शन माता का नाम देवी, आयुष्य ८४ हजार वर्ष, गर्भकल्याणक फाल्गुनशुक्ल चौथ, जन्मकल्याणक मार्गशीर्ष शुक्लएकादशी, कुंवरपद २१ हजार वर्ष, राज्यगादी ४२ हजार वर्ष शिबिका निवृत्तिकरा दीक्षा कल्याणक मार्गशीर्ष शुक्लएकादशी एक हजार के साथ, पहली गोचरी के दाता का नाम अपराजित, पहली गोचरीमें क्या मिला खीर, छद्मस्थ अवस्था का समय ३ तीन वर्ष, ९ नौ मास, चैत्यवृक्ष का नाम आमवृक्ष, केवल कल्याणक कार्तिक शुक्ल द्वादशी निर्वाण कल्याणक मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी देहप्रमाण
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