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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥८४५॥
संखा दिसद्विसहस्सा साहुणीणं संखा छसयोत्तर एगसट्ठिसहस्सा, सावगाणं । शान्तिनाथ
प्रभोः संखा दोलक्ख णवईसहस्सा, सावियाणं संखा तिलक्ख, ति नवईसहस्सा, साहु चरित्रम् केवलीणं संखा तिसयोत्तर चत्तारि सहस्सा साहुणी केवलीणं संखा छसयोत्तर अट्टसहस्सा, ओहिनाणीणं संखा तिसहस्सा, मणपज्जवनाणीणं संखा चत्तारि सहस्सा, चउद्दसपुव्वीणं संखा छसयातीसा वेउव्वियलद्धिधराणं छसहस्सा, वाईणं संखा चउव्वीससया, सासणकालो अद्धपल्लोवमं, असंखेजा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो गरुडो, सासणदेवी निप्पण्णा ॥
१६ श्रीशान्तिनाथप्रभु का चरित्रभावार्थ-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्डरीकिणीनगर में मेघरथ राजा राज्य करते थे। मेघरथ राजाने अपने सात सौ पुत्रों, चार हजार राजाओं एवं अपने लघु भ्राता
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