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________________ प्रभोः ॥८३३॥ कल्पसूत्रे पंचसयोत्तरपंचसहस्सा, चउद्दसपुग्विणं संखा एगसयोत्तर एगसहस्सा, वेउ- विमलनाथ सशब्दार्थे व्वियलद्धिधराणं संखा छसहस्सा, वाईणं संखा छत्तीससयाई, सासणकालो नवचरित्रम् सागरोवमो, असंखेजा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो छमुहो, सासणदेवी विजया। । १३-विमलनाथ प्रभु का चरित्रधातकी खण्डद्वीप के प्रागविदेह क्षेत्र में भरतनामक विजय में महापुरी नामकी । नगरी थी। वहां पद्मसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे धर्मात्मा एवं न्याय प्रिय | थे। उन्होंने सर्वगुप्ते नाम के आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की और साधना के सोपान पर चढते हुए तीर्थकर नाम कर्मका उपार्जन किया । कालान्तर में आयुष्य पूर्ण करके सहस्रार देवलोक में उत्पन्न हुए। ___ वहां से च्यवकर आठवें देवलोक में, देवलोक की स्थिति १८ सागरोपम, जन्म ।। नगरी कंपीलपुर, पिता का नाम कीर्तिभानु, माता का नाम श्यामा, आयुष्य ६० साठ ॥८३३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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