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प्रभोः
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कल्पसूत्रे पंचसयोत्तरपंचसहस्सा, चउद्दसपुग्विणं संखा एगसयोत्तर एगसहस्सा, वेउ- विमलनाथ सशब्दार्थे
व्वियलद्धिधराणं संखा छसहस्सा, वाईणं संखा छत्तीससयाई, सासणकालो नवचरित्रम् सागरोवमो, असंखेजा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो छमुहो, सासणदेवी विजया। ।
१३-विमलनाथ प्रभु का चरित्रधातकी खण्डद्वीप के प्रागविदेह क्षेत्र में भरतनामक विजय में महापुरी नामकी । नगरी थी। वहां पद्मसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे धर्मात्मा एवं न्याय प्रिय | थे। उन्होंने सर्वगुप्ते नाम के आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की और साधना के सोपान
पर चढते हुए तीर्थकर नाम कर्मका उपार्जन किया । कालान्तर में आयुष्य पूर्ण करके सहस्रार देवलोक में उत्पन्न हुए। ___ वहां से च्यवकर आठवें देवलोक में, देवलोक की स्थिति १८ सागरोपम, जन्म ।। नगरी कंपीलपुर, पिता का नाम कीर्तिभानु, माता का नाम श्यामा, आयुष्य ६० साठ
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