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कल्पसूत्रे
विमलनाथ प्रभोः
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सशब्दार्थे
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॥८३२॥
चरित्रम्
सहस्सपरिवारेण सद्धिं माहसुक्कचउत्थीए विमला सिवियारूढो दिक्खिओ जाओ, पढम भिक्खादायारो जयनामा, भिक्खाए खीरं लद्धं, छउमत्थाकालो दो मासा, पोससुक्क छट्ठदिणे जंबूनाम चेइय रुक्खतले केवलणाणं, आसोइसुक्क सत्तमीए निव्वाणं, सट्टि धणुप्पमाणं देहपमाणं, कंचणवण्णो, सुरलक्खणो, णायग गणहरो मंदिर, अग्गणी साहूणी धरणीहरा, पव्वज्जाकालो पण्णरसलक्खवरिसं, गणहराणं संखा सत्तवण्ण (सप्तपञ्चाशत् ५७) साहु संखा अट्ठासद्विसहस्सा, साहुणी संखा अट्टासयोत्तर एगलक्खा, सावगाणं संखा अद्र- | सहस्सोत्तरं दोलक्खा, सावियाणं संखा चौवीससहरसोत्तरं चत्तारिलक्खा, केवली साहूणं संखा पंचसयोत्तरं पंचसहस्सा, केवलीसाहणीणं संखा एक्कारससहस्सा, ओहिनाणीणं संखा अट्ठसयोत्तर चत्तारि सहस्सा, मणपज्जवनाणीणं संखा
॥८३२॥
जस