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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
वासुपूज्य प्रभोः चरित्रम्
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तीससागरोवमो, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया। सासणदेवो सुकुमारो सासणदेवी पवरा आसी ॥१२॥
१२-श्रीवासप्रज्यभगवान का चरित्रपुष्कर द्वीपार्ध के पूर्व विदेह क्षेत्र के मंगलावती विजय में रत्न संचया नाम की नगरी थी। वहां के शासकका नाम पद्मोत्तर था, वह धर्मात्मा न्यायी प्रजापालक और पराक्रमी था। उसने संसार का त्याग करके 'वज्रनाभ' मुनिराज के पास दीक्षा धारण की। संयम की कठोर साधना करते हुए उसने तीर्थंकर गोत्र का बंध किया और आयुष्य पूर्ण करके प्राणत कल्प में महर्द्धिक देव बना।
वहां से च्यवकर १० वें देवलोक, देवलोक की स्थिति २० सागरोपम, जन्म नगरी चंपानगरी, पिता का नाम वसुराजा, माता का नाम जया, आयुष्य ७२ लाख वर्ष, गर्भ कल्याणक ज्येष्ठ शुक्ल नवमी, जन्म कल्याणक फाल्गुन कृष्ण द्वादशी, कुंवर पद १८
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