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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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'नलिनीगुल्म' नामका तेजस्वी एवं पराक्रमी राजा था ।
नलिनीगुल्म के हृदय
में
एक बार अनित्य भावनाओं में लीन हुए महाराजा वैराग्य बस गया- उन्होंने वज्रदत्त मुनि के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । साधना में बहुत वर्षो उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए उन्होंने तीर्थकर नामकर्म का बंध किया । वे तक तप संयम का पालत करते हुए आयु पूर्ण करके बारहवें देवलोक में महर्द्धिकदेव रूप से उत्पन्न हुए ।
वहां से च्यवकर स्थिति बाईस सागरोपम, जन्म नगरी सिंहपुरी, पिता के नाम विष्णुसेन, माता का नाम विष्ना, आयुष्य ८४ लाख वर्ष, गर्भ कल्याणक ज्येष्ठ कृष्णा षष्ठी, जन्मकल्याणक फाल्गुन कृष्ण द्वादशी, कुंवरपद २१ लाख वर्ष, राज्यगादी समय ४२ लाख वर्ष, शिबिका सुरप्रभा, दीक्षा कल्याणक फाल्गुण कृष्ण त्रयोदशी. छ सौ के साथ पहली गोचरी के दाता का नाम पूर्णानंद, पहली गोचरी में क्या मिला खीर 'छद्मस्थ
श्रेयांसनाथ
प्रभोः
चरित्रम्
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