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________________ कल्पसूत्रे मामाचरित्रम् .: सशब्दार्थे ।।८२४॥ धरणी, पब्वज्जाकालो इक्कीसलक्खवरिसो, गणहराणं संखा छावत्तरि, साहु- श्रेयांसना a प्रभोः । | संखा चउरासीइसहस्सा, साहुणीणं संखा तिसहस्सोत्तर एगलक्खा, सावगाणं संखा उन्नासीइसहस्सोत्तर दोलक्खा, सावियाणं संखा अडयालीससहस्सोत्तर चत्तारि लक्खा, साहु केवलीणं संखा पंचसयोत्तर छसहस्सा, केवली साहुणीणं । संखा तेरससहस्सा, ओहिनाणीणं संखा छसहस्सा, मणपज्जवनाणीणं संखा छसहस्सा, चउद्दसपुव्वीणं संखा तिसयोत्तर एगसहस्सा, वेउव्वियलद्धिधराणं संखा एक्कारससहस्सा, वाईणं संखा पंचसहस्सा, सासणकालो चउवण्णं सागरोवमो, असंखेजा पट्टामोक्खं गया, सासणदेवोमनुजो, सासणदेवी सिरिवच्छा।११। ११-श्रीश्रेयांसनाथ प्रभु का चरित्रपुष्कराई द्वीप के पूर्व में कच्छ विजय के अन्दर क्षेमा' नामकी नगरी थी वहां ८२४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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