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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे 11८१४॥ मुविधिनाथ चरित्रम् नाम थेरसमीबे दिक्खिओ जाओ, एगावलि पभिइओ घोर तवं किच्चा महा- पउम मुणीना तित्थगरनाम गोयं कम्मं उवाजियं। अंते सुभज्झवसाएण कालावसरे कालं किच्चा आणय देवविमाणे महढिओ देवो जाओ। __एगूणवीसं सागरोवमं ठिई पुण्णं किच्चा तओ चइऊण काकंदिए नयरीए, सुग्गीवो नाम राया, रामा देवी गब्भमि आगच्छिय, फग्गुण किण्ह नवमीए गब्भकल्लाणगं, मिग्गसिर किण्हपंचमीए जम्मकल्लाणग, आउदुलक्खपुव्वं, कुमारपए पन्नाससहस्सपुव्वं, एकलक्खपुब्वं रज्जं पालिऊण अरुणपभासिवियारूढो सहस्सपरिवारेण सद्धिं मिग्गसिरकिण्हछट्ठीए दिवसे दिक्खीओ जाओ, पढमभिक्खादायारो पुस्सो, पढमे भिक्खाए खीरं लद्धं, छउमत्थावत्था कालो चत्तारि सहस्स वरिसा, भावी नाम चेइय रुक्खतले कत्तिय MIN ८१४॥ it
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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