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कल्पसूत्रे समन्दार्थे ।।८११॥
तिणउवइ, साहु संखा दुलक्खा पन्नाससहस्सा, साहुणी संखा तिलक्ख । चन्द्रप्रभ
स्वामि असीइं सहस्सा, सावगसंखा पंचसहस्सोत्तर. दोलक्खा, सावियाणं संखा चरित्रम् । एगणवइसहस्सोत्तर चत्तारिलक्खा, केवली साहूणं संखा दससहस्सा, केवलीसाहुणीणं संखा बीससहस्सा, ओहिनाणीणं संवा अट्ठसहस्सा, मणपजवनाणीणं संखा अटुसहस्सा, चउद्दसपुग्विणं संखा दोसहस्सा, वेउव्वियलद्धिणं संखा चउद्दससहस्सा, वाईणं संखा छावत्तरिसया, सासणकालो णउइकोडिसागरोवमो, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो विजयो, सासणदेवीअ जाला।
८--चन्द्रप्रभस्वामी का पूर्वभव . धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्र में मंगलावती विजय में 'रत्न संचया' नाम की नगरी थी। वहां 'पद्म' नाम के वीर राजा राज्य करते थे। वे संसार में रहते हुए
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