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कल्पसूत्रे
सुपार्श्वनाथ
सशब्दार्थे ।।८०७॥
जिन 0 चरित्रम्
सासणकालो नवसयकोडिसागरोबमो, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो मायंगो, सासणदेवी सांता आसी।
७--श्रीसुपार्श्वनाथजी का पूर्वभव धातकी खण्ड द्वीप के पूर्व विदेह में 'क्षेमपुरी' नामकी रमणीय नगरी थी। वहां 'नन्दिषेण' नामका प्रतापी राजा राज्य करते थे। वे धर्मात्मा थे। धर्ममय जीवन व्यतीत करने के कारण उन्हें संसार के प्रति विरक्ति हो गई। उन्होंने 'अरिमर्दन' नामक स्थविर आचार्य के पास प्रवज्या ग्रहण की। उत्कृष्ट भावना से तप और संयम की साधना करते हुए 'नंदिषेण' मुनिने तीर्थङ्कर नामकर्मका उपार्जन किया। अन्तिम समय में संलेखना संथारा करके समाधि पूर्वक देह का त्याग किया और काल धर्म पाकर ग्रैवेl यक विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए।
वहां से च्यवकर छटा अवेयक देवलोक का स्थिति २८ अठाईस सागरोपम, जन्म
॥७॥