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शक्रेन्द्रक्रततीर्थकरजन्ममहोत्सवः
कल्पसूत्रे ।। नव इन्द्रों के दक्ष नामक पदातिका स्वामी है ॥१९॥ सशब्दार्थे
- मूलम्-वाणमंतरजोइसिया णेयव्या एवं चेव णवरं चत्तारि सामाणि ॥६ ॥
साहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ सोलस आयरक्खसहस्सा विमाणा जोयण सहस्सं, महिंदज्झया पणवीसजोयणसयं घंटा दाहिणाणं मंजुस्सरा उत्तराणं मंजुघोसा पायत्ताणियाहिबई विमाणकरिय आभिओगा देवा जोइसियाणं सुरसरा सुस्सरणिग्योसाओ घंटाओ मंदरे समोसरणं जाव पज्जुवासंति ॥२०॥
भावार्थ-इस प्रकार का कथन वानव्यंतर देवताका और ज्योतिषी देवता का भी कहना इस में इतना विशेष चार हजार सामानिक देव, चार अग्रमहिषी सोलह हजार आत्मरक्षक देव एक हजार योजन का लम्बा चौडा विमान सवासो योजन की महेन्द्र ध्वजा व्यंतर जाति के दक्षिण दिशा के १६ इन्द्र के मंजुस्वरा नामक घंटा उत्तर दिशा के १६ इन्द्र
॥६॥