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शक्रेन्द्रक्रततीर्थकरजन्ममहोत्सवः
कल्पसूत्रे
के मंजुघोषा नामक घंटा है, कटक का स्वामी भी पालदेव है ज्योतिषी में चंद्रमा इन्द्र सशब्दार्थे र
के सुस्वरा नामक घंटा है और सूर्य के सुस्वरा निर्घोष नामक घंटा है यों १० वैमा॥६९॥
निक के २० भवनपति के ३२ वानव्यंतर के और २ ज्योतीषी के सब मिलकर ६४ इन्द्र मेरु पर्वत पर आकर तीर्थंकर भगवान की पर्युपासना करते हैं ॥२०॥ .. __मूलम्-तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महिंदे देवाहिवे आभिओगे देवे सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! महत्थं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठावेह ॥२१॥
भावार्थ-फिर अच्युतेन्द्र नामक देवेन्द्र देवता का राजा और सब देवेन्द्र का स्वामी आभियोगिक देवता को बुलाते हैं और कहते हैं कि अहो देवानुप्रिय ! महा। अर्थवाला महदर्घ्य, महामूल्यवाला ऐसा तीथकर का जन्म का अभिषेक करो ॥२१॥
- मूलम्-तए णं से आभियोगा देवा हट्टतुट्ठा जाव पडिसुणित्ता, उत्तरपुर
॥६९॥