________________
कल्पसूत्रे सशब्दाथ ॥७८०॥
ऋपभदेवप्रभोः चरित्रम्
.. .. ऋषभदेव भगवान् का पूर्वभव
भावार्थ-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह स्थित पुष्कलावती विजय में लवणसमुद्र के समीप पुण्डरिकिणी नामकी नगरी थीं। वहां बज्रसेन नाम के राजा थे। उनकी रानी का नाम धारिणी था। उनके पुत्र का नाम वज्रनाभ था। वज्रनाभ ने अपना राज्य अपने पुत्र को सौंपकर भगवान् बज्रसेन के समीप प्रव्रज्या ग्रहण की । वहां पर उत्कृष्ट आराधना करके तीर्थकर गोत्र को उपार्जन किया। वे वहां से आयुष्य पूर्ण करके तैंतीस सागरोपम की उत्कृष्ट आयुवाले सर्वार्थसिद्ध विमान में देव हुए । .. सर्वार्थसिद्ध विमान से चवकर कौशल देश में (विनीता नगरी) नाभिराजा और मरु देवी माता के अषाढकृष्ण चौथ के दिन गर्भ में आये। चैत्र कृष्ण अष्टमी जन्म लिया। बीसलाखपूर्व कुंवरपद, त्रैसठ लाख पूर्व राज्यगादी समय, सुदर्शना शिविका, चैत्र कृष्ण नवमी चार हजार के सहित दीक्षा और पहली भिक्षा देनेवाले श्रेयांसकुमार,
॥७८०॥
Bea
ARTill