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CHESED
कल्पसूत्रे से सींचे जाते हैं। तत्पश्चात् वे बीज अंकूररूप से उगते हैं। उनकी रक्षा के लिये वाड, उपसंहारः सशब्दार्थ लगाई जाती है। इस प्रकार के प्रयत्न से वे बीज पत्तों, शाखाओं, प्रशाखाओं (टह
नियां) से युक्त वृक्षों के रूप में परिपात हो जाते हैं। उन वृक्षों में सरस और सुगंधित पुष्प और फल लगते हैं। इसी प्रकार : यह कल्पसूत्र भगवान् के भव-वृक्ष के. समान है। इसकी भूमि--उत्पत्ति स्थानः नयसार का भव है। अनित्य, अशरण,
आदि बारह भावनाएं इसकी क्यारी है। इसका बीज समकित कहा गया है। I निःशंकित आदिः सम्यक्त्व के आठ आचार इसे सींचने के लिये जल के समान हैं। IMA
वीस स्थानक इसकी वाड़ है। ऐसा यह वीरभव वृक्ष के समान है। गौतम आदि गणधर इस वृक्ष की शाखाए हैं। चतुर्विध संघ प्रशाखाए-शाखाओं की शाखाए है। आवश्य आदि-साधु-आचार रूप दस प्रकार की सामाचारियां इसके पत्ते हैं। उत्पाद, व्यय, धौव्यरूप त्रिपदी इसकी पुष्पावली है। द्वादशांगी इसका सौरभ है । मोक्ष इसका ७७४॥