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१ :पसूत्रे फल बतलाते हुए उपसंहार करते हैं-भगवान् महावीर का कल्पसूत्र रूप यह भव-वृक्ष उपसंहारः ब्दार्थे
है। नयसार का भव इस की भूमि है। भावनाए इसकी क्यारी हैं। समकित बीज है । निःशंकित आदि जल है ॥१॥ नन्द का जन्म अंकुर है। वीस स्थानक बाड है। महावीर का भव वृक्ष है, जिसकी शाखाए' गणधर है ॥२॥ चतुर्विध संघ प्रशाखाए' (टहनियां) है। सामाचारियां पत्ते हैं। त्रिपदी फूल हैं । बारह अंग सौरभ-सुगंध है ॥३॥ मोक्ष इसका फल है । अव्यावाध, अनन्त, अक्षय सुख इसका रस है । इस प्रकार यह कल्पसूत्र वीर .. भगवान् का भववृक्ष रूप है ॥४॥ यह कल्पसूत्र भव्य जीवों का मनोरथ सफ़ल करने के ... लिये कल्पवृक्ष के समान है । अभीष्ट प्रदान करनेवाला है विनयपूर्वक नित्यसेवन किया हुआ यह सूत्र सर्वोत्कृष्ट सिद्धिप्रदान करता है।
सब से पहले वृक्ष की उत्पत्ति के योग्य अच्छी भूमि देखभाल कर * क्यारी बनाकर, आम्र आदि रसदार फलों के बीज वहां बोये जाते हैं। फिर उन्हें जल
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