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________________ कल्पसूत्रे ।। फल है । अव्यावाध, अनन्त असीम और अक्षय सुख इसका रस है। कल्पसूत्र वीरका उपसंहारः । सशब्दार्थे यह भववृक्ष है ऐसा समझना चाहिए। यह कल्पसूत्र मुमुक्षु जीवों की अभिलाषा पूर्ण ॥७७५॥ करने में कल्पवृक्ष के समान है; अतएव सभी अभिष्ट पदार्थो का दाता है। विनयपूर्वक इसका नित्य पठन-पाठन श्रवण श्रावण मनन आदिरूप आराधना करने से यह सर्वोस्कृष्ट सिद्धि प्रदान करता है ॥१-५॥ प्रियव्याख्यानी संस्कृत-प्राकृतवेत्ता, जैनागम- - निष्णात् पूज्यश्री घासीलालजी महाराज के प्रधान शिष्य पण्डित मुनिश्री कन्हैयालालजी 2 महाराज द्वारा रचित श्री कल्पसूत्र की कल्पमंजरी व्याख्या सम्पूर्ण हुई ॥! :: 5 इतिश्री विश्वविख्यात-जगबल्लभ प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापकप्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक वादिमानमर्दक-श्री शाहूछत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त 'जैनशास्त्राचार्य” 'पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु बालब्रह्मचारी-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालवतिविरचितं-श्रीकल्पसूत्रम् सम्पूर्णम् ॥ - ॥७७५॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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