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कल्पसूत्रे
उपसंहारः
सभन्दायें
॥७६९॥
चउस्संघो पसाहाओ, सामायारी दलानिय। पुप्फावलि य तिवई बारसंगी सुगंधओ ॥३॥ फलं मोक्खो निराबाहा णंताक्खयि सुहं रसो। वीरस्स भबरुखोऽमू, कप्पसुत्तस्स रूवगो॥४॥ भव्व संकप्प कप्पहु-कप्पो चिंतिय दायगो।। सेवियो विणया णिच्चं देइ सिद्धिमणुत्तरम्॥५॥ ॥५०॥ ॥ इय कप्पसुत्तं संपूण्णं ॥
उपसंहार अब सूत्रकार इस कल्पसूत्र को कल्पवृक्ष के समान निरूपित करते हुए और फल | बतलाते हुए उपसंहार करते हैं-[वीरस्स भवरूक्खोऽमू] भगवान महावीर का कल्पसूत्र
|॥७६९॥