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कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥७६८॥
। प्रभवस्वामि परिचयः
विरमण आदि पुष्पों से पुष्पित करते हुए और आत्मकल्याण रूप फलों से फलवान् बनाते हुए विचरने लगे। [एवं विहरमाणो सो कालमासे कालं किच्चा सग्गं गओ] इस प्रकार विचरते हुए प्रभवस्वामी कालमास में काल करके अर्थात् यथा समय देहत्याग कर देवलोक में गये। [तओ चुओ सो महाविदेहे खित्ते समुप्पज्जिय सासओ सिद्धो भविस्सइ] देवलोक से चवकर वे महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध पद प्राप्त करेंगे ॥४९॥
उवसंहार नयसार भवो भूमी आलवालं च भावणा । समत्तं बीय मक्खायं जलं निस्संकिया इयं ॥१॥ अंकुरो नंद जम्मं च वुत्ती ठाणग वीसइ । रुक्खो वीरभवो जस्स साहाओ गणहारिणो ॥२॥
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