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कल्पसूत्रे ।। कुमारने नमस्कार मंत्र के प्रभाव से उनकी गति स्तंभित कर दी [नियगई थंभियं । प्रभवस्वामि सशब्दार्थे
परिचयः - दळूण पभवो विम्हिओ किं कायव्वविमूढो य जाओ] अपनी गति. स्तंभित हुइ. देख .... ॥७६५॥
प्रभव चकित रह गया और उन्हें सूझ न पड़ा कि अब क्या करना चाहिए [तस्स एरिसिं ठिई दट्टण जंबुकुमारो हसीअ] उनकी यह स्थिति देखकर जंबूकुमार को हंसी आगइ। [तस्स हासं सोच्चा पभवो तं कहीअ] उनकी हंसी सुनकर प्रभवने उनसे कहा[महाभाग ! जं मम इयं ओसावणी विज्जा अमोहा अस्थि सा वि तुमंमि निष्फला
जाया] महाभाग ! मेरी यह अवस्वापिनी विद्या अमोघ है कभी निष्फल नहीं जाती ' किन्तु उसका भी आप पर असर नहीं हुआ [तए पुण अम्हाणं गई चावि थंभिया]
आपने हमारी गति भी स्तंभित कर दी हैं [अओ तुवं को वि विसिट्रो पुरिसो पडिभासि] - इस से मालूम होता है कि आप कोई विशिष्ट पुरुष है [तुमं ममोवरि किवं किच्चा . .थंभणि विज्जं मम देहि] आप कृपा करके स्तंभनी विद्या मुझे दीजिए [अहं च तुब्भं 4
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