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कल्पसूत्रे दा
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प्रभवस्वामि परिचयः
अवरो कणिट्टपभवाभिहाणो] एक ज्येष्ट प्रभव कहलाता था और दूसरा कनिष्ट (छोटा) प्रभव कहलाता था [तत्थ जेट्ठपभवो केणवि कारणेणं कुद्धो जयपुरनयराओ निस्सरिय विझायलस्स विसमत्थले अभिणवं गामं वासित्ता तत्थ निवसिय] उनमें से ज्येष्ठ प्रभव किसी कारण क्रोधित होकर जयपुर नगर से निकलकर विन्ध्याचल के एक विषम स्थान में एक नया गांव बसाकर वहीं रहने लगे [सो य चोरिय- लुंटणाइगरिहियवित्तिं ओलंबीअ] उन्होंने चोरी एवं लूटपाट आदि निन्दित आजीविका का अवलंबन किया [एगया तेण आकण्णियं जं रायगिहे नयरे जंबू नामगो उसभदत्त सेट्ठिपुत्तो अटूसेट्ठि कण्णाओ परिणीअ ] एक वार उसने सुना कि राजगृह नगर में जंबू नामक ऋषभदत्त सेठ के पुत्र का आठ श्रेट्टी कन्याओं के साथ विवाह हुआ है । [दाये तेण ससुरेहिंतो naras कोडी परिमियाओ सुवण्णमुद्दाओ लाओत्ति ] उन्हें अपने श्वसूरों से निम्न्यानवे करोड स्वर्णमुद्राएं दहेज में मिली हैं [ एवं सोच्चा सो पभवो चोरो णवणवइ
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