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जम्बृस्वाब जस्ता
कल्पसूत्रे | आहारक शरीर क्षपकश्रेणी, उपशमश्रेणी जिनकल्प तीन संयम, केवलज्ञान, और मुक्ति।४८ सशब्दार्थे ॥७५७॥
| भावार्थ-राजगृह नगर में ऋषभदत्त सेठ की धारिणी नामक पत्नि के उदर-अङ्ग। जात ब्रह्म नामक पांचवें देवलोक से च्यवकर आये हुए जंबू नामक पुत्र थे। सोलह
वर्ष की उम्र में उन्होंने सुधर्मा स्वामी से धर्म का उपदेश सुना और प्रतिबोध प्राप्त किया। प्रतिबोध पाकर शील और सम्यक्त्व अंगीकार किया। माता-पिता के तीव्र अनुरोध से आठ कन्याओं के साथ विवाह किया। मगर विवाह की रात्रि-सुहागरात. में वह जंबूकुमार अनुरागवती उन आठों कन्याओं की प्रणय-परिपूर्ण वाणी से मोहित
न हुए। उनके साथ जंवूकुमार की आपस में कथाएं-प्रतिकथाएं हुई। आठों रमणियोंने :: जंबूकुमार को अपनी और आकृष्ट करने के लिए अनेक कथाए कहीं। उनके उत्तर में । जंवूकुमार ने भी कथा कही। इस प्रकार उत्तर-प्रत्युत्तर होने पर आठों नवविवाहिता
पत्नियों को भी प्रतिबोध प्राप्त हुआ। उसी-विवाह की रात्रि में चारसौ निन्न्यानवें है
॥७५७।।