________________
॥७५६||
कल्पसूत्रे ।। णाणं]. परमावधिज्ञान [पुलागलद्धी] पुलाकलब्धि [आहारगसरीरं] आहारक शरीर जम्बूस्वामि
परिचयः सशब्दार्थे
खवगसेणी] क्षपक श्रेणी [उवसमसेणी] उपशम श्रेणी [जिणकप्पो] जिनकल्प [संजमत्तिगं] तीन संयम-परिहार विशुद्धि सूक्ष्म सांपराय, यथाख्यात [केवलणाणं] केवलज्ञान [सिज्झाणा] मोक्ष । [मोक्खंगए उ तस्सि एया ठाणा वुच्छिण्णा] जंबू स्वामी के मोक्ष पधारने पर यह दस बाते विच्छिन्न हो गई। [भवंति एत्थ दुवे संगहणी गाहाओ] यहां दो संग्रहणी माथाएं है-[बारस बरिसेहि गोयमु सिद्धो वीराउ वीसइ सुहम्मो] || श्रीवीर निर्वाण से बारह वर्ष बीतने पर श्रीगौतमखामी का वीस वर्ष बीतने पर सुधर्मास्वामी का [चउसट्टीए जंबू वुच्छिन्ना तत्थ दस ठाणा] तथा चौसठ वर्ष के बीतने पर जंबू स्वामी का निर्वाण हुआ। उसके बाद दस स्थानों का विच्छेद हो गया। वे दस स्थान ये हैं-[१ मण २ परमोहि ३ पुलाए ४ आहारग ५ खवग ६ उवसमे ७ कप्पे । ८ संजमतिग ९ केवल १० सिझगा] 'मनःपर्यवज्ञान, परमावधिज्ञान, पुलाक लब्धि ७५६॥
14F