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सुधर्म- .
स्वामि
- ससन्दार्थे
॥७४८॥
परिचयः
कल्पनने। ऐसा कहा है, मैंने सुना है । अतएव केवली पाट पर प्रतिष्ठित नहीं किये जाते ॥४६॥
- सुहम्मसामि परिचओ मूलम्-कोल्लागसन्निवेसे धम्मिल्लविप्पस्स भदिलाभन्जाए जाओ सुहम्मसामी चउद्दसविज्जापारगो पण्णासवरिसंते पव्वइओ। तीसं वासाई सिरि वद्धमाणसामिस्स अंतिए निवसिय भगवओ निव्वाणाणंतरं बारसवरिसाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता जम्मओ वाणउइवरिसंते गोयमसामि निव्वाणाणंतरं केवलणाणं पाविय अटुवरिसाइं केवलिपरियागे ठिच्चा एगसयवरिसाइं सव्वाउयं पालइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स निव्वाणाणंतरं वीसइवरिसेसु वीइकंतेसु जंबूसामिणं नियपट्टे ठाविय सिवं गए ॥४७॥
शब्दार्थ-[कोल्लागसन्निवेसे धम्मिल्लविप्पस्स. भदिलाभज्जाए जाओ सुहम्म-
७४८॥