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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ||७४६॥ द्रव्य से उपधिकर और भाव से कषाय व तीनों गर्व से रहित हलके ओजस्वी-मन के जधर्म स्वामि चढते परिणाम वाले, तेजस्वी शरीर की अच्छी प्रभावाले, यशस्वी-सौभाग्यादि गुण परिचयः सहित उत्तम यशवंत, क्रोध, मान, माया, लोभ, इन्द्रिय, निद्रा, परिषह इनको जीतनेवाले, निज जीविताश व मृत्यु के भय से मुक्त अनशनादि तप, संयमादिगुण पिंडविशुद्धादिक चरणसितरी, दशविध यति धर्मादि करण सितरी के गुणयुक्त रागादि शत्रु का 15 निग्रह करता करणि के फल में निश्चय करनेवाले में प्रधान, ऋजुता, मृदुता, क्षमा, 11 गुप्ति, मुक्ति. विद्या, मंत्र, ब्रह्मचर्य, वेद लोकिक, लोकोत्तर शास्त्र, नैगमादिनय, अभिग्रहादि निगम, वचनादि सत्यता, मनादि शौचता, ज्ञान, दर्शन व चारित्र में उदार, इन गुणों में प्रधान, घोर करणी करने वाले घोर व्रत पालने वाले, घोर तपस्वी, घोर ब्रह्म चर्य पालने वाले, शरीर की शुश्रूषा रहित संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्यावाले चउदह पूर्व के पाठी और चार : ज्ञानयुक्त थे ॥४५॥ ॥७४६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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