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________________ कल्पसूत्रे दा ॥७४४॥ भूमि है । इसके पश्चात् मोक्षगमनका विच्छेद हो गया । मुक्तिमार्ग की भूमि पर्यायान्त कृभूमि कहलाती है । भगवान् के केवली - पर्यायको यहां 'पर्याय' कहा है । वह पर्याय होने पर जिन्होंने भवका अन्त किया- मोक्ष पाया, उनकी भूमि पर्यायान्तकृत् भूमि कहलाती है । तात्पर्य यह है कि भगवान् महावीर की केवली - पर्याय उत्पन्न होनेके अनन्तर, चार वर्ष बाद प्रारंभ हुई मोक्ष - मार्ग की भूमि पर्यायान्त कृतभूमि है । यह दो भूमियां थीं ॥ ४४ ॥ मूलम् - तेणं कालेणं तेणं समएणं, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्ज सुहम्मे णामं थेरे - जाइसंपन्ने, कुलसंपन्ने, बाल-रूव - विणयणाणदंसणचरित्तलाघवसंपन्ने, ओयंसी, तेयंसी, वच्चंसी, जसंसी, जियकोहे जियमाणे, जियमाए, जियलोहे, जिइंदिए, जियनिद्दे, जियपरिसहे, जीवियासामरण BROCCO भगवत्परिवार वर्णनम् ॥७४४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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