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________________ कल्पसूत्रे ... सातसौ सिद्धों की उत्कृष्ट संपदा थी। इसी प्रकार चौदहसौ सिद्धि के धारक ... भगवत्प . रिवारबन्दाथै .. साध्वियों की उत्कृष्ट संपदा थी। इस प्रकार सब मिलाकर इक्कीससौ सिद्धोंकी वर्णनम् ॥७४३॥ उत्कृष्ट सिद्ध-सम्पदा थी। अगले अनन्तर भवमें मुक्ति पानेवाले; देवलोक में तेतीस ... ' सागरोपम की स्थिति प्राप्त करनेवाले तथा जो अगले भवमें मनुष्य होकर मोक्षरूप भद्रको प्राप्त करेंगे, ऐसे आठसौ अनुत्तरोपपातिकों [अनुत्तरविमान में जानेवालों की है। . उत्कृष्ट अनुत्तरोपपातिक सम्पदा थी। तथा दो प्रकारकी अन्तकृत् भूमि थी-(१) .. In युगाकृतभूमि और २ पर्यायान्तकृत्भूमि । कालकी एक प्रकारकी अवधिको युग कहते हैं। युग-क्रम से होते हैं इस समानता के कारण गुरु, शिष्य, प्रशिष्य आदि के कर्म से होनेवाले पुरुष भी युग कहलाते हैं । उन युगों से प्रमित मोक्षगामियों के कालको ..' युगान्तकृत्भूमि कहते हैं । आशय यह है कि भगवान्-महावीर के तीर्थ में, भगवान् महावीर के निर्वाणसे आरंभ करके जम्बूस्वामी के निर्वाण पर्यन्तका काल युगान्तकृत् ॥७४३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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