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कल्पसत्रे सभन्दाथै ॥७४२॥
भगवत्परिवारवर्णनम्
श्रुतके ज्ञाता तथा यथार्थ अर्थात् सर्वज्ञ जैसा उत्तर देने वाले चौदह पूर्वधारियों की तीनसौ उत्कृष्ट चतुर्दशपूर्वधारी सम्पदा थी। अवधिज्ञान को धारण करनेवाले प्रभावशाली तेरह सौ मुनियों की उत्कृष्ट अवधिज्ञानी सम्पदा थी। उत्पन्न हुए ज्ञान और दर्शनको धारण करनेवाले सातसौ केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट केवली-सम्पदा थी। देव न होने पर भी देव-ऋद्धि अर्थात् वैक्रिय लब्धि को धारण करनेवाले सातसौ मुनियों की उत्कृष्टसम्पदा थी । जम्बूद्वीप, धातकी खण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप इस तरह अढाई द्वीपोंके तथा लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र-इन दो समुद्रों के पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों मनके भावों पर्यायों को जानने वाले पांचसौ विपुलमति-मनःपर्ययज्ञान के धारक विपुलमतियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी। देवों, मनुष्यों और असुरोंसे सहित सभामें शास्त्रार्थ के विचार में पराजित न होनेवाले चारसौ वादियों की उत्कृष्ट वादी-सम्पदा थी। सिद्ध और ‘यावत्'-पदसे-बुद्ध, मुक्त परिनिर्वृत तथा सब दुःखोंका अन्त करनेवाले
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