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भगवत्प
रिवारवर्णनम्
कल्पसूत्रे । भावार्थ-उस काल और उस समय में श्रमणभगवान् महावीर की इन्द्रभूतिआदि चौदह | सशब्दार्थ
: हजार साधुओं की उत्कृष्ट साधु-सम्पदाथी, अर्थात् भगवान् के चौदह हजार साधु थे। ॥७४१॥
'चन्दनवाला आदि छत्तीसहजार साध्वियों की उत्कृष्ट साध्वी-संपदा थी, अर्थात् छत्तीस .. हजार साध्वियां थी। शंख, शतक-अपरनाम वाले तथा पुष्कलि वगैरह एकलाख उनसठ
हजार [१५९०००] आदि तीन लाख अठारह हजार श्राविकाओंकी उत्कृष्ट श्राविका सम्पदा थी। जिन अर्थात् सर्वज्ञ न होने पर भी सर्वज्ञ और सर्वाक्षर-सन्निपाती अर्थात् सम्पूर्ण
२-मुक्ति मार्ग की भूमि पर्यायान्तकृत् भूमि कहलाती है । भगवान् की केवली... पर्याय को यहां 'पर्याय' कहा है । वह पर्याय होने पर जिन्होंने भवका अन्त किया-मोक्ष
पाया, उनकी भूमि पर्यायान्तकृत्भूमि कहलाती है। भगवान् महावीर को केवली- पर्याय उत्पन्न होने के अनन्तर चार वर्ष के बाद प्रारंभ हुई मोक्ष मार्गकी भूमि पर्या
यान्तकृत्भूमि है । यह दो भूमियां थी ॥४४॥
॥७४१॥