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कल्पसूत्रे
शक्रन्द्रव्रततीर्थकर
महोत्सवः
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स्सीहिं तेत्तीसाए तायत्तीसएहिं चउहि लोगपालेहिं पंचहिं अग्गमहिसीहिं स सशब्दार्थे
परिवाराहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणियाहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं चउहिं ॥६४॥
चउसट्ठीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णेहिं जहा सक्को णवरमिमं णाणत्तं .३ दुमो पायत्ताणियाहिवई ओघस्सरा घंटा विमाणं पण्णासंजोयणसहस्साइं महिंद* ज्जओ पंच जोयणसहस्साई विमाणकारी आभिओगिओ देवो अवसिद्रं तं चेव ।
जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासइ ॥१७॥ J. भावार्थ-उस काल और उस समय में चमरेन्द्र नामक असुरेन्द्र असुरकुमार जाति
के देवों की चमरचंचा राजधानी में सुधर्मा सभामें चमर सिंहासन पर ६४ हजार सामानिक तेत्तीस त्रायस्त्रिंशक चार लोकपाल परिवार सहित पांच अग्रमहिषीयों तीन परिषदा सात अनीक, सात अनीकाधिपति, दो लाख छप्पन हजार आत्मरक्षक और अन्य बहुत
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॥६४॥