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कल्पसूत्रे सधन्दार्थे H६३॥
शक्रेन्द्रक्रततीर्थकरजन्ममहोत्सवः
के द्वार उत्तर दिशा में है और अग्निकोन के रतिकर पर्वत पर विश्राम लेते हैं ईशानेन्द्र, माहेन्द्र, लांतकेन्द्र, सहस्रारेन्द्र और अच्युतेन्द्र इन पांचो के महाघोष नामक घंटा है, लघुपराक्रम नामक पदातिका अधिपति देवता है। दक्षिण दिशा में निकलने का द्वार है और ईशानकोन के रतिकर पर्वत पर विश्रामस्थान है इनकी तीनों परिषदा के देवों का कथन जीवाभिगमसूत्र से जानना। सामानिक देवों से आत्मरक्षक देव चोगुने जानना। सब के यान विमान एक लाख योजन का लम्बा चौडा और अपने २ देवलोक के विमान जितना उंचा बनाते है सबकी महेन्द्र ध्वजा एक हजार योजन की। शकेन्द्र तीर्थंकर के जन्म नगर में आते हैं और शेष इन्द्र अपने २ स्थान से सीधे मेरु पर्वत पर आते हैं यावत् पर्युपासना करते हैं ॥१६॥ - मूलम् तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसी चउसट्ठी सामाणियसाह
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