________________
VER
शक्रेन्द्रक्रततीर्थकर
महोत्सवः
कल्पसूत्रे
| देवता एवं देवी के साथ भोग भोगता हुआ विचरता है वगेरह सब वर्णन शकेन्द्र जैसे ही सभन्दाथ | कहना परंतु यहां पर विशेषता बताते हैं। दुम पदात्यानिक का अधिपति ओघस्वर घंटापच्चास ॥६५॥
Viel हजार योजन का विमान लम्बा चौडा पांच हजार योजन की उंची महेन्द्र ध्वजा विमान बनानेI वाला आभियोगी देवता, शेष सब पूर्वोक्त प्रकार कहना। यह मेरु पर्वत पर सीधे जाते हैं।१७।
- मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिरसुरिंदे असुरराया एवमेव णवरं il सट्ठी सामाणिय साहस्सीओ चउगुणा आयरक्खा महादुमो पायत्ताणीयाहिवई 1 महाओघरस्सरा घंटा सेसं तं चेव परिसाओ जहा जीवाभिगमे ॥१८॥
भावार्थ-उस काल और उस समय में बलि नामक असुरेन्द्र यावत् भोगोपभोग भोगता हुआ विचरता है इसका भी कथन पूर्वोक्त प्रकार से कहना। विशेष में ६० हजार सामानिक देव दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देव महादुम नामक पदाति अनीक का अधिपति यहां ओघस्वर घंटा और शेष पूर्वोक्त प्रकार जानना। यावत् मेरु पर्वत पर
॥६५॥